दर्द और प्रेम का अलग सा ही नाता है,
प्रेम एक तरफ़ तो दर्द लता है,
और उस दर्द से बाहर निकलने के लिए भी, इंसान प्रेम को ही खोजता है…
उस खोज में कभी वो प्रेम को पा लेता है,
या फिर उस खोज में वो खुद को ही खो देता है…
प्रेम एक ऐसा शब्द है जो खुद अधूरा होता है,
तो वो कैसे किसी और को पूरा कर सकता है,
बस इतनी सी एक बात हम समझते नहीं, इसलिए तो हम भटकते रहते है..
खुद को खो के, जो औरो मैं खोजते है,
अगर खुद में नहीं पाया, तो औरो मैं कैसे पा सकते है…
प्रेम बस एक जज़्बात है, जो हर वक्त रूप बदलता रहता है,
वो कभी किसी के लिए रुकता नहीं है,
बस हम ही हैं जो ढूंढने में गुम रहते है…
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